Monday, December 13, 2010

बाज़ार खुल गया

टंग गए बस्ते , खुल गयी बोरियां,
बंधे फीते और फिसली डोरियाँ,
चाभियाँ घूमी तालों में,
और कंघे गीले बालों में,
एक शहर भरा मोहल्लों से,
भरी गलियां उसकी गल्लों से,
माहौल में आज फिर जोर है,
सब्जी भाजी का शोर है,
सड़क पे बड़ी चहल पहल,
कुछ पहियों पे, कुछ टहल टहल,
कोई जा रहा कोई आ रहा,
कोई भजन कोई मुन्नी गा रहा,
कहीं चाय छनी है गरम गरम
कहीं रोटी सिकी है नरम नरम,
कहीं दूध कहीं पे तेल है खौला,
कहीं पाव कहीं पे किलो है तौला,
धुंआ अगरबत्ती का भी,
तम्बाकू की पत्ती का भी,
जलते बुझते इंधन का भी,
अंगराई लेती इंजन का भी,
जैसे ही हवा में घुला मिला,
सब जान गए बाज़ार खुला,
सूरज जागा और रात सो गयी,
दिन की फिर शुरुआत हो गयी|

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