Wednesday, March 16, 2011

panney

आज के भी पन्ने पे, काफी काटा पीटी है
इसपे भी जल्दबाजी में ज़ोरों से कलम घसीटी है
न स्पष्ट हैं अक्षर, न पड़े ठीक आकार ही,
बस बिन्दुओं और मात्राओं का, जंजाल है इस बार भी|
उन पन्नों को फाड़ कर, फ़ेंक दिया करता हूँ,
जिनमें मैं बार बार, गलतियां करता हूँ,
कुछ ज़रूरी कोने, मोड़ दिया करता हूँ,
कुछ को कोरा ही, छोड़ दिया करता हूँ |

कुछ चित्र विचित्र से, कुछ सन्देश अधूरे,
कारण अकारण लिखे गए, वो शब्द पूरे,
पीछे के कुछ पन्नों पर अस्त-व्यस्तता बस्ती है,
पर उसी भीड़ भाड़ में छुपी, कहीं मेरी भी हस्ती है|
याद  है वो दिन अब भी जब, मैंने उसे सजाया था,
हलकी सी स्याही के, गहनों को पहनाया था,
बेदाग़ रखने की कोशिश में, बार बार सहलाया था,
नयी कॉपी का पहला पन्ना, जब पहली बार पलटाया था|

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