Thursday, August 20, 2009

Tum Aaj Agar Hotey Bhagat Singh...

This is a poem that I wrote after getting inspired by the "Sarfaroshi ki tamanna..." piece in the movie Gulaal. The tone of the poem is the same and this one too has been addressed to a freedom fighter. However, the ideas and the verses of course are completely mine.
The poem was used in the play 'The Man who knew Hitler' which I had directed recently.

तुम आज अगर होते भगत सिंह,
तो जाने क्या हो जाता,
क्या तुम रह पाते भगत सिंह,
या नाम तुम्हारा खो जाता?

तुम आज अगर होते भगत सिंह,
तो देखते तुमने क्या miss किया,
तुमने तो सिर्फ़ सूली चूमी थी,
हमने किस किस को kiss किया।

तुम दिल में लौ लिए फिरते थे,
हम अक्सर chill में रहते हैं,
तुम दूसरों के दिल में रहते थे,
हम अपने बिल में रहते हैं।

नशा था तुमको आज़ादी का,
जो जगा के तुमको रखता था,
हमको देखो मस्त नशे में,
हम बेसुध होकर सोते हैं।

एक ही दिन में भगत सिंह,
जल के धुंआ तुम हो गए,
हमको देखो रोज़ थोड़े-
थोड़े धुंआ हम होते हैं।

तुम देशप्रेम में जागते थे,
हम प्रेमरोग में जागते हैं,
तुम गोरों के पीछे भागते थे,
हम गोरियों के पीछे भागते हैं।

तब ये मुल्क कुछ और कैंदा था,
आज ये मुल्क कुछ और कैंदा है,
तब कहते थे सब "वंदे मातरम"
आज कहते हैं,"की फर्क पैंदा है"?

तुम देख नही पाये भगत सिंह,
की १५ अगस्त क्या होता है,
कैसे भारत छुट्टी वाले दिन,
खर्राटे ले कर सोता है।

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