तो क्या करूँ गर मैं तुम सा नहीं
मेरी आदतें अलग हैं
मेरी सोच अलग है
दिल तो आज भी तुम्हारा है
बस उसपर लगी खरोंच अलग है
कई बातें समझता तो हूँ
पर यूँ ही मान कैसे लूँ?
खंजर पे लगी गुज़ारिश मंज़ूर
पर इनाम में फ़रमान कैसे लूँ?
तुमसा तो हो जाऊँ मगर
तुम नहीं मैं हो सकता
तुझे खुद में उतार भी लूँ
तो खुद से गुम नहीं हो सकता
तेरा दिल रख तो लूँ
पर उसे सम्भालना मुश्किल होगा
अपने दिल को तोड़ भी दूँ
पूरी तरह निकालना मुश्किल होगा
यूँ न खींचो अपनी ओर
एक एक कर बढ़ाने दो कदम
प्यार से ही सही पर यूँ न जकड़ो
कि घुट जाने लगे दम
हक से चाहो मार दो
नीयत पे मेरी यूँ शक न करो
लाखों चोट पहुंचा लो मगर
उसे मेरी सबक न कहो
न तुम सही न मैं गलत
क्यों न मान जाएँ न मानने को?
तू जिद्दी मैं ढीठ हूँ
चल ठान लें कुछ न ठानने को
तू उस ओर मैं इस ओर बढ़ूँ
कि शायद फिर भी रास्ते मिल जाएँ
एक दूसरे का रास्ता रोकने से अच्छा
दोनों ही रास्ते से हिल जाएँ?
तो क्या करूँ गर मैं तुम सा नहीं
मेरी आदतें अलग हैं
मेरी सोच अलग है
Saturday, April 8, 2017
तो क्या करूँ
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